नई दिल्ली. माना जाता है कि किसी भी बच्चे के पहले टीचर उसके पेरेंट्स ही होते हैं. माता-पिता की देखरेख में कोई बच्चा जिंदगी का ‘पहला पाठ’ सीखता है. यह बात खेलों के लिहाज से भी फिट बैठती है. कई क्रिकेटर के पहले कोच उनके पिता ही रहे है. पिता की देखरेख में ही इन्होंने खेल की बारीकियां सीखीं. पिता से कोचिंग हासिल कर शीर्ष स्तर का क्रिकेट खेलने वालों में ताजा नाम सरफराज खान और इनके भाई मुशीर खान का है. ‘खान भाइयों’ को भारत का भविष्य का क्रिकेट स्टार माना जा रहा है.
सरफराज ने इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में डेब्यू किया और शुरुआती तीन टेस्ट में ही तीन अर्धशतक जड़कर प्रभावित किया. उनके छोटे भाई मुशीर, अंडर 19 वर्ल्डकप में भारत के स्टार परफॉर्मर रहे. स्पिन गेंदबाजी में भी माहिर 19 साल के मुशीर ने रणजी ट्रॉफी के फाइनल में शतक जड़कर सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्ड को तोड़ा. वे रणजी ट्रॉफी फाइनल में सैकड़ा बनाने वाले मुंबई के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं.
सरफराज और मुशीर, दोनों ने पिता नौशाद खान की देखरेख में ही ऊंचाइयों को छुआ है. नौशाद ने अपने बच्चों को क्रिकेटर बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत की. कोच के तौर पर अपने बच्चों के खिलाफ वे बेहद सख्त रहे. सरफराज के टेस्ट डेब्यू के समय भावुक होकर आंसू पोंछते पिता नौशाद के वायरल फोटो ने सबका ध्यान खींचा था. नजर डालते हैं देश के उन अन्य क्रिकेटरों पर जिनके शुरुआती कोच पिता ही रहे.
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चेतेश्वर पुजारा : पिता के अलावा चाचा भी रहे हैं क्रिकेटर
टीम इंडिया के भरोसेमंद टेस्ट बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा ने क्रिकेट का ककहरा पिता से ही सीखा. उनके पिता अरविंद पुजारा सौराष्ट्र की ओर से फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेल चुके हैं. अपनी बैटिंग खासकर डिफेंस को बेहतर बनाने के लिए चेतेश्वर ने पिता के मार्गदर्शन में घंटों प्रैक्टिस की. क्रिकेट चेतेश्वर के खून में है. पिता के अलावा उनके दादा और चाचा भी क्रिकेटर रहे हैं. पिता अरविंद ने बताया था कि चिंटू (चेतेश्वर का घर का नाम) जब छोटा था तो मैं उसे सीमेंट की पिच पर अभ्यास कराता था. शॉर्टपिच गेंद पर बैटिंग में कुशल बनाने के लिए बेटे को 22 के बजाय 18 यॉर्ड से गेंद कराई जाती थीं ताकि गेंद उन तक तेजी से पहुंचे और उन्हें शॉट खेलने के लिए कम समय मिले.
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युवराज सिंह : फाइटर पिता का फाइटर बेटा
बाएं हाथ के बल्लेबाज युवराज सिंह ने पिता योगराज की निगरानी में शुरुआती क्रिकेट सीखा है. तेज गेंदबाज रहे योगराज भारत के लिए एक टेस्ट और छह वनडे खेल चुके हैं, दुर्भाग्यवश उनका करियर ज्यादा लंबा नहीं रहा. करियर लंबा नहीं रहने की टीस हमेशा योगराज के मन में रही और बेटे को अपने से बेहतर क्रिकेटर बनाने के लिए उन्होंने जीजान लगा दी. बचपन में युवराज रोलर स्केटिंग करते थे लेकिन पिता ने सख्ती दिखाते हुए उन्हें क्रिकेट में ही ध्यान देने को कहा. युवराज को बैटिंग का अभ्यास कराने के लिए योगराज खुद घंटों उन्हें बॉलिंग करते थे. इसके लिए घर के पीछे उन्होंने पिच बनवाई थी. योगराज ने एक बार बताया था, ‘कई बार मैं युवराज से इतनी मेहनत कराता था कि मेरी मां (युवराज की दादी) रोकर कहती थीं कि तेरी यह सख्ती ‘युवी’ की जान ले लेगी.’ पिता की देखरेख में कठिन अभ्यास करने वाले युवराज ने बाद में सुखविंदर बावा की कोचिंग में खेल को तराशा. युवराज की छवि ‘फाइटर’ प्लेयर की है. माना जाता है कि उन्हें यह गुण पिता से ही मिला है. युवराज के कैंसर से उबरने के बाद योगराज भी इस बीमारी के शिकार हो गए थे लेकिन अमेरिका से सर्जरी कराकर लौटे. योगराज फिल्मों में काम करने के साथ-साथ क्रिकेट में कोचिंग भी दे रहे हैं. सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन को कोचिंग देकर वे हाल में सुर्खियों में आए थे.
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दीपक चाहर : बेटे की खातिर पिता ने सीखीं कोचिंग की बारीकियां
31 साल के दीपक चाहर टी20I में हैट्रिक लेने वाले भारत के इकलौते बॉलर हैं. स्विंग गेंदबाज दीपक भारत के लिए 13 वनडे और 25 टी20 मैच खेल चुके हैं. लोअर ऑर्डर के अच्छे बैटर के तौर पर भी उन्होंने पहचान बनाई है. आगरा में जन्मे दीपक ने पिता लोकेंद्र चाहर के मार्गदर्शन में गेंदबाजी को निखारा है. दीपक की कोचिंग की कहानी दिलचस्प है. उनके पिता लोकेंद्र अच्छे क्रिकेटर थे लेकिन शीर्ष स्तर का क्रिकेट नहीं खेल सके. बाद में वे एयरफोर्स में नौकरी करने लगे. दीपक ने शुरुआती कोचिंग शेरवुड अकादमी के कोच रणजीत सिंह से ली. इस समय तक उनके पिता लोकेंद्र के पास कोचिंग का कोई अनुभव नहीं था. बाद में लोकेंद्र ने कोचिंग की बारीकिया सीखीं और दीपक को अपनी निगरानी में बॉलिंग प्रैक्टिस कराई. बेटे की ट्रेनिंग के लिए उन्होंने श्रीगंगानगर के एयरफोर्स कैंपस में पिच तैयार कराई और रोजाना घंटों प्रैक्टिस कराते थे. दीपक के चचेरे भाई राहुल चाहर, जो रिस्ट स्पिनर की हैसियत से भारत के लिए खेले हैं, ने भी लोकेंद्र की निगरानी में ही बॉलिंग प्रैक्टिस की है. कोचिंग की औपचारिक डिग्री नहीं होने के बावजूद लोकेंद्र मशहूर कोचों और बॉलरों के वीडियो देखकर बेटे को गेंदबाजी के गुर सिखाया करते थे. क्रिकेट का बैकग्राउंड होना इस लिहाज से उनके लिए फायदेमंद रहा.
वॉशिंगटन सुंदर : पिता रहे क्रिकेटर, बहन भी क्रिकेट खेलती है
24 साल के वॉशिंगटन सुंदर तीनों फॉर्मेट का बेहतरीन खिलाड़ी हैं. वॉशिंगटन ने चार टेस्ट, 19 वनडे और 43 टी20 खेले हैं और ऑलराउंडर की हैसियत से अहम योगदान दिया है. वॉशिंगटन के पिता टीएस सुंदर भी क्रिकेटर रहे हैं. वे वॉशिंगटन और उनकी बहन शैलजा के शुरुआती कोच रहे. पिता के मार्गदर्शन में ही वॉशिंगटन और उनकी बहन ने क्रिकेट सीखी. शैलजा भी ऑलराउंडर है और तमिलनाडु के लिए क्रिकेट खेलती हैं. टीम इंडिया के लिए डेब्यू करते हुए वॉशिंगटन ने कहा था कि पिता की कोचिंग और अपनी कड़ी मेहनत के बल पर ही वे इस मुकाम पर पहुंचे हैं.
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जतिन परांजपे : पिता वासु थे मशहूर कोच
बाएं हाथ के हार्ड हिटिंग बैट्समैन जतिन परांजपे का इंटरनेशनल करियर इंजुरी के कारण छोटा रहा. वे 1998 में भारत के लिए चार वनडे ही खेल सके. हालांकि घरेलू क्रिकेट में उन्हें काफी ऊंचा रेट किया जाता था. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में मुंबई की ओर से जतिन ने 46.09 के औसत से 3964 रन बनाए जिसमें 13 शतक थे. जतिन के पिता (स्वर्गीय) वासु परांजपे बेहद मशहूर कोच थे. 29 फर्स्ट क्लास मैच खेले वासु, नेशनल क्रिकेट अकादमी (NCA) में भी बतौर कोच सेवाएं दे चुके हैं. जतिन ने अपने पिता से ही क्रिकेट की बारीकियां सीखी थीं. सचिन तेंदुलकर, संजय मांजरेकर, रमेश पोवार, राहुल द्रविड़ सहित कई मशहूर क्रिकेटरों के खेल कौशल को तराशने में भी वासु का अहम योगदान रहा है.
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FIRST PUBLISHED : April 1, 2024, 07:50 IST