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May 19, 2024
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इस्‍लाम में एक-दो नहीं, कई तरह के होते हैं तलाक, जानें उनके बारे में सबकुछ


मुस्लिमों में तीन तलाक यानी एकसाथ तीन बार तलाक बोलकर शादी खत्‍म करने के मुद्दे पर काफी चर्चा होती रही है. केंद्र सरकार ने कानून लाकर तीन तलाक को गैर-कानूनी भी बना दिया. लेकिन, क्‍या आप जानते हैं कि इस्‍लामी कानून के मुताबिक तलाक कई तरह से लिया जाता है. इनमें कुछ में तलाक की प्रक्रिया पति शुरू करता है तो कुछ में इसकी शुरुआत पत्‍नी कर सकती है. इस्लामी कानून में तलाक यानी शादी खत्‍म करना, खुल यानी आपसी सहमति से अलग होना और फस्ख यानी धार्मिक अदालत के समक्ष विवाह विच्‍छेद करना शामिल हैं. ऐतिहासिक तौर पर तलाक के नियम शरिया के जरिये शासित होते थे. हालांकि, ये नियम अलग-अलग फिरकों में अलग हो सकते हैं. ऐसे में ऐतिहासिक प्रथाएं कानूनी सिद्धांत से अलग होती थीं.

इस्लाम में पति और पत्‍नी दोनों को कई तरह के अधिकार मिले हुए हैं. इसमें तलाक का अधिकार भी शामिल है. इस्लाम में तीन तरह के तलाक की बात कही गई है. इनमें तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक शामिल हैं. तीन तलाक के अलावा इस्लाम में हलाला के बारे में भी बताया गया है. अगर तलाक के बाद पति और पत्‍नी दोबारा साथ होना चाहते हैं तो हलाला की जरूरत पड़ती है. अब सवाल ये उठता है कि इन तीनों तरह के तलाक में क्‍या होता है और किसे कौन शुरू करता है. वहीं, हलाला क्‍या है और इस्‍लाम में तलाकशुदा पति-पत्‍नी को फिर से साथ होने के लिए इसकी जरूरत क्‍यों है?

तलाक-ए-हसन में सुलह की भी होती है कोशिश
सबसे पहले जानते हैं कि तलाक-ए-हसन क्‍या है? तलाक-ए-हसन के तहत पति अपनी पत्‍नी को 3 महीने में तलाक देता है. इसमें वह पत्‍नी को हर एक महीने के अंतराल पर एक बार तलाक कहता है. इसमें ये शर्त भी शामिल है कि जब पति पहली बार पत्‍नी को तलाक बोलता है, तब बीवी का मासिक धर्म नहीं चल रहा हो. फिर दूसरी बार तलाक बोलने से पहले और उसके बाद तक दोनों के बीच सुलह कराने की कोशिशें की जाती हैं. अगर पति-पत्‍नी के बीच फिर भी सुलह नहीं होती है तो पति तीसरे महीने तीसरा तलाक भी बोल देता है. हालांकि, अगर पति-पत्‍नी ने इन 3 महीनों के दौरान एक बार भी संबंध बना लिए तो उनका तलाक नहीं हो सकता है.

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तलाक-ए-हसन में पति पत्‍नी को हर एक महीने के अंतराल पर तीन बार तलाक कहता है.

तलाक-ए-अहसन में वापसी का रहता है विकल्‍प
तलाक-ए-अहसन में पति अपनी पत्‍नी से सिर्फ एक बार ही तलाक बोलता है. इसके बाद दोनों अगले 3 महीने तक एक ही छत के नीचे रहते हैं. इस दौरान दोनों एक-दूसरे से दूरी बनाए रखते हैं. तलाक-ए-अहसन में अगर पति तलाक वापस लेना चाहता है तो 3 महीने में कभी ले सकता है. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो 3 महीने पूरे होने पर दोनों का विवाह विच्‍छेद हो जाता है.

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तलाक-ए-बिद्दत को ही कहा जाता है तीन तलाक
तलाक-ए-बिद्दत के तहत पति अपनी पत्‍नी को एक बार में ही तीन बार तलाक बोल देता है. इसमें एकसाथ तीन बार तलाक बोलने के तुरंत बाद विवाह विच्‍छेद हो जाता है. इसी को इंस्टैंट तलाक भी कहा जाता है. केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने कानून लाकर इसी तलाक को गैर-कानूनी कना दिया है. अब देश में तीन तलाक देने पर पत्‍नी चाहे तो पति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकती है. अब देश में तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन पर भी रोक लगाने की मांग कोर्ट में की जा रही है.

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साथ रहने के लिए पत्‍नी को हलाला से गुजरना होता है
इस्‍लामी कानून के मुताबिक, अगर कोई पति अपनी पत्‍नी को तलाक देने के बाद दोबारा बीवी से मेल करना चाहता है तो महिला को हलाला से गुजरना होता है. इसके तहत बीवी को पहले किसी दूसरे व्‍यक्ति से शादी करनी पड़ती है. फिर दूसरे पति से तलाक लेना होता है. इसके बाद ही वह अपने पहले पति के पास वापस लौट पाती है. यही नहीं, उसे अपने पहले पति से भी दोबार दोबारा निकाह करना पड़ता है. वहीं, तलाक के बाद पत्‍नी को मेंटनेंस फीस के नाम पर कुछ नहीं मिलता है. हालांकि, पति को तलाक देने पर मेहर की रकम लौटानी पड़ती है.

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खुला में तलाक की प्रक्रिया पति के बजाय पत्‍नी शुरू करती है.

खुला में पत्‍नी करती है तलाक की प्रक्रिया शुरू
खुला तलाक का ही एक रूप है. इसमें महिला शादी खत्‍म करने की प्रक्रिया शुरू करती है. खुला के जरिये महिला अपने शौहर से संबंध तोड़ सकती है. खुला का जिक्र कुरान और हदीस में भी है. अगर कोई महिला अपने शौहर से खुला लेती है तो उसको अपनी जायदाद का कुछ हिस्सा वापस करना पड़ता है. हालांकि, खुला के लिए शौहर और बीवी दोनों की रजामंदी होनी जरूरी है. साफ है कि जहां तलाक में पुरुष अपनी बीवी से अलग होने का फैसला करता है, वहीं खुला में बीवी अपने शौहर से अलग होने का फैसला करती है.

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सनातन में क्‍या है तलाक की व्‍यवस्‍था
सनातन धर्म में तलाक की कोई व्‍यवस्‍था नहीं होती है. हालांकि, हिंदू मैरिज एक्‍ट के तहत कानूनी तौर पर अदालत में याचिका दायर कर तलाक लिया जा सकता है. इसमें कोर्ट दोनों को सुलह का समय भी देता है. इसके बाद भी अगर दोनों साथ नहीं रहना चाहते तो तलाक को मंजूरी दे दी जाती है. साथ ही अगर पत्‍नी की किसी जरिये से आमदनी नहीं होती है तो पति को उसे हर महीने या एकमुश्‍त, जो कोर्ट तय करे, उस हिसाब से रखरखाव खर्च का भुगतान करना होता है.

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