झारखंड की सियासत में बड़ा दबदबा रखने वाला कुर्मी समुदाय इस बार के चुनाव में भी बंटा रहेगा या राजनीतिक दलों की गोलबंदी की कवायद रंग लाएगी. ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधनों ने कुर्मी वोट बैंक में सेंधमारी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है. कोई दल कुर्मी नेताओं पर दांव लगा रहा है तो कोई लुभावने वादों से उन पर डोरे डाल रहा है. पर कुर्मी मतदाता का मिजाज भांपना इतना आसान नहीं है.
झारखंड में आदिवासी के बाद कुर्मी-महतो दूसरा सबसा बड़ा वोट बैंक माना जाता है. कुर्मी कार्ड से कई बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव का गणित बनता और बिगड़ता रहा है. लोकसभा की 14 में से पांच सीटों पर तो कुर्मी वोटर ही निर्णायक हैं. ये पांच सीट हैं रांची, जमशेदपुर, हजारीबाग, धनबाद और गिरिडीह. जमशेदपुर में 11, रांची में 17, गिरिडीह में 19, हजारीबाग में 15 और धनबाद में 14 फीसदी कुर्मी वोटर होने के दावे किए जाते हैं. जबकि 30 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर भी कुर्मी वोटर जबर्दस्त ताकत रखते हैं.
कुर्मी आबादी कहां हावी?
आजादी से पहले की जनगणना के मुताबिक झारखंड में सरकारी कागजों में 16 प्रतिशत कुर्मी आबादी दर्ज है. पर कुर्मी समाज 25 फीसदी आबादी का दावा करता रहा है. खास कर छोटानागपुर में इनका सबसे ज्यादा दबदबा है. राजनीतिक रूप से सशक्त और आर्थिक रूप से संपन्न माने जाने वाले कुर्मी वोटर्स ही कई सीट पर बड़े-बड़े दावेदारों की हार और जीत तय करते रहे हैं.
क्या है कुर्मी समाज के मुद्दे?
झारखंड के साथ-साथ ओडिशा और पश्चिम बंगाल में रहनेवाला कुर्मी समुदाय अपनी परंपरा और संस्कृति की वजह से खुद को आदिवासी समुदाय के करीब मानता है. उनका दावा है कि आजादी से पहले उन्हें भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त था. पर बाद में उनसे ये हक छीन लिया गया और ओबीसी की सूची में डाल दिया गया. अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग वो भूले नहीं हैं और इस मांग को लेकर समय-समय पर सड़क पर उतरते रहे हैं.
रांची का सियासी गणित
रांची लोकसभा क्षेत्र में 17 फीसदी कुर्मी वोटर होने के दावे किए जाते हैं. इसी वोट बैंक की बदौलत दिग्गज कुर्मी नेता रामटहल चौधरी भाजपा के टिकट पर इस सीट से पांच बार सांसद रहे. पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया तो वो चुनाव में निर्दलीय कूद पड़े. लेकिन, जब रिजल्ट आया तो वो महज 29,597 यानी सिर्फ 2.4 प्रतिशत वोट ही ला सके. इस बार टिकट की आस में वो कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस को रामटहल चौधरी के रूप में एक और कुर्मी नेता मिल गया.
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जमशेदपुर में दबदबा
करीब 11 प्रतिशत कुर्मी आबादी वाले जमशेदपुर लोकसभा में 35 साल में हुए 11 चुनावों में तीन बार ही गैर कुर्मी प्रत्याशी जीत सके. जबकि रिकॉर्ड आठ बार कुर्मी उम्मीदवार जमशेदपुर के रास्ते संसद पहुंचे. इसलिए जब 2011 की हार से सबक लेकर 2014 में भाजपा ने जेएमएम से आए विद्युवरण महतो को प्रत्याशी बनाया तो भाजपा की ये रणनीति कारगर साबित हुई. शायद यही वजह है कि 61 वर्षीय कुर्मी नेता विद्युतवरण महतो को इस बार तीसरी दफा भी जमशेदपुर से भाजपा ने उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है.
गिरिडीह में किसका चलेगा सिक्का?
गिरिडीह में कुर्मी समुदाय की आबादी 19 फीसदी मानी जाती है. इसके बावजूद यहां से अब तक सिर्फ तीन कुर्मी नेता ही संसद पहुंच सके. इनमें 1991 में दिग्गज जेएमएम नेता विनोद बिहारी महतो, 2004 में जेएमएम नेता टेकलाल महतो और 2019 में आजसू नेता चंद्रप्रकाश चौधरी के नाम शामिल हैं. इस बार भी गठबंधन के तहत आजसू के खाते में आई इस सीट से चंद्रप्रकाश चौधरी ही ताल ठोंक रहे हैं. उन्हें पटखनी देने के लिए जेएमएम ने अनुभवी कुर्मी नेता मथुरा महतो को टिकट दिया है. पर युवा खतियानी नेता जयराम महतो के चुनाव लड़ने के ऐलान से दोनों प्रत्याशियों की परेशानी बढ़ गई है. यानी तीन-तीन कुर्मी प्रत्याशी के मैदान में उतरने से इस वोट का बंटवारा तय है.
धनबाद में कुर्मी कार्ड
धनबाद जैसी सीट पर जहां अब तक सवर्ण उम्मीदवारों का दबदबा रहा है वहां पर इस बार भाजपा ने पुराने समीकरण को नजरअंदाज कर कुर्मी कार्ड आजमाया है. उसने ढुलू महतो को मैदान में उतारा है. धनबाद से सटी गिरिडीह सीट पर सहयोगी आजसू के कुर्मी नेता सीपी चौधरी उम्मीदवार हैं. जाहिर है धनबाद और गिरिडीह के कुर्मी उम्मीदवारों के जरिए भाजपा अन्य सीटों पर भी कुर्मी वोटरों को गोलबंद करने की रणनीति पर काम कर रही है.
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कुर्मी वोट पर सबकी नजर
झारखंड में आदिवासी आबादी 26 प्रतिशत है, जबकि कुर्मी आबादी 16 प्रतिशत. ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल इनकी अनदेखी नहीं कर सकता. जहां आदिवासी समाज संथाल, मुंडा, उरांव, हो और पहाड़िया जनजातियों में बंटा हुआ है वहीं कुर्मी समाज में ज्यादा एकता है. यही वजह है कि कुर्मी वोटर्स को साधने के लिए भाजपा अक्सर दूसरे दलों के दिग्गज कुर्मी नेताओं को अपने पाले में करती रही है. जेएमएम से शैलेंद्र महतो से लेकर राजकिशोर महतो, विद्युवरण महतो, जयप्रकाश पटेल और जेवीएम से ढुलू महतो को शामिल कराना भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा था.
यही नहीं आजसू से गठबंधन के पीछे भी जेएमएम के आदिवासी, कुर्मी और मुस्लिम जैसे मजबूत वोट बैंक की काट खोजना था. भाजपा को उसकी इसी रणनीति से मात देने के लिए गठबंधन ने भी कमर कस ली है. जेएमएम से भाजपा में आए जेपी भाई पटेल को टिकट देकर अपने पाले में करना कांग्रेस के इसी प्लान का हिस्सा है. पर किसकी रणनीति किस पर भारी पड़ेगी, ये आने वाले समय में ही पता चल सकेगा.
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FIRST PUBLISHED : April 9, 2024, 18:55 IST