अंकित पोपट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी सफर का आगाज राजकोट से हुआ था, जब 2001 में मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने के बाद वह राजकोट विधानसभा सीट से उपचुनाव में जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. राजकोट लोकसभा सीट पर 1962 में पहली बार चुनाव हुआ और इसमें कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के टिकट पर नवलशंकर ने यहां से पहला चुनाव जीता था. इस इलाके में पटेल वोट निर्णायक भूमिका में हैं. ज्यादा संख्या कड़वा पटेलों की है. साथ ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, कोली और बनिया वोट भी यहां काफी है.
शहरी इलाकों में ज्वैलरी का काम करने वाले व्यापारी ज्यादा हैं. इस इलाके में बड़े पैमाने पर ज्वैलरी का काम होता है. इसी के चलते राजकोट पश्चिम भारत का ज्वैल स्टेट भी कहा जाता है. राजकोट लोकसभा सीट जामनगर, राजकोट और सुरेंद्रनदर जिले में आती है. इसके अंतर्गत तनकारा, राजकोट पश्चिम, जसदण, वांकानेर, राजकोट दक्षिण, राजकोट पूर्व और राजकोट ग्रामीण विधानसभा सीटे हैं.
सबसे दिलचस्प चुनावी जंग राजकोट लोकसभा सीट पर होगी. राजकोट लोकसभा सीट से कांग्रेस ने पूर्व नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी को मैदान में उतारा है. बीजेपी ने यहां से केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला को मैदान में उतारा है. ऐसे में 22 साल बाद कांग्रेस ने धनानी को राजकोट से टिकट दिया है. धनानी और रूपाला एक बार फिर चुनावी मैदान में आमने-सामने होंगे. परषोत्तम रूपाला कड़वा पाटीदार समुदाय से आते हैं. परेश धनानी लेउवा पाटीदार हैं. दोनों दिग्गज अमरेली से हैं. परेश धनानी अब तक तीन बार विधायक रह चुके हैं. सबसे पहले धनानी ने 2002 में अमरेली विधानसभा सीट से परषोत्तम रूपाला के खिलाफ चुनाव लड़ा था जिसमें उन्होंने रूपाला को 16 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. बीजेपी के कदावर नेता को हराकर धनानी विजेता बने थे. हालांकि, 2007 के चुनाव में हार का सामना करने की बारी उनकी थी. 2019 के लोकसभा में चुनाव में धनानी ने अमरेली से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए थे.
पाटीदार समुदाय का दबदबा
17 % लेउवा पाटीदार
9 % कड़वा पाटीदार
15 % कोली समुदाय
9 % मुस्लिम समुदाय
7% क्षत्रिय समाज
7.5 % दलित समुदाय
4 % ब्राह्मण समुदाय
4 % भरवाड-रबारी
27.5 % अन्य
गुजरात में चल रहे क्षत्रिय समुदाय के विवाद का असर लोकसभा चुनाव में बीजेपी पर पड़ सकता है. राजकोट में क्षत्रिय समुदाय रूपाला की उम्मीदवारी रद्द करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहा है. हालांकि ये विरोध सिर्फ राजकोट उम्मीदवार के लिए ही चल रहा है. अगर क्षत्रिय समुदाय बीजेपी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करता है तो सौराष्ट्र की अन्य सीटों पर बीजेपी की बढ़त पर असर पड़ सकता है.
2019 का जनादेश
7,58,645 वोट बीजेपी के मोहन कुंडरिया को मिले
3,90,238 वोट कांग्रेस के कगथारा ललितभाई को मिले
18,318 मतदाताओं ने नोटा इस्तेमाल किया
15,388 वोट बसपा के विजय परमार को मिले2014 का जनादेश
मोहन भाई कुंदरिया, बीजेपी- 5,08,437 वोट (58.8%)
कुंवरजी भाई बावलिया, कांग्रेस- 3,75,096 (35.5%)
रूपाला राजनीतिक करियर
परषोत्तम रूपाला कड़वा पाटीदार समाज से आते हैं. वह तीन बार राज्यसभा से सांसद बने और तीन बार विधायक रहे हैं. वह वर्तमान में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन मंत्री हैं. वह गुजरात बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं. रूपाला का एक लंबा राजनीतिक कैरियर रहा है. जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उनकी कैबिनेट में वे मंत्री भी नियुक्त किए गए थे.
परेश धानाणी का राजनीतिक करियर
रूपाला और धनानी दोनों अमरेली के दिग्गज नेता हैं. परेश धनानी अब तक तीन बार विधायक बन चुके हैं. सबसे पहले, धनानी ने 2002 में अमरेली विधानसभा सीट से परषोत्तम रूपाला के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जिसमें रूपाला को 16 हजार से ज्यादा वोटों से हार मिली थी. हालांकि, 2007 के चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2019 के लोकसभा चुनाव में धनानी ने अमरेली से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. दूसरी ओर रूपाला एक अनुभवी नेता हैं और क्षेत्र में उनका दबदबा है. ऐसे में राजकोट में एक बार फिर दिलचस्प मुकाबला होने को तैयार है.
राजकोट में परेश धनानी को उतारने के पीछे कांग्रेस की बड़ी रणनीति है. पहला मकसद सौराष्ट्र की अन्य छह सीटों पर राजकोट के समीकरणों को प्रभावित करना है. दूसरी बड़ी वजह राजकोट लोकसभा सीट का सियासी गणित है. राजकोट में कुल मतदाताओं में पाटीदार मतदाताओं की हिस्सेदारी 28 फीसदी है. इसमें भी लेउवा पाटीदारों की संख्या कड़वा पाटीदारों से लगभग दोगुनी है.
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FIRST PUBLISHED : April 16, 2024, 13:59 IST