33 C
नरसिंहपुर
May 9, 2024
Indianews24tv
खेल

इंजीनियरिंग की खातिर क्रिकेट से लिया ब्रेक, 2 टेस्‍ट खेलने के 5 साल बाद टीम इंडिया में की वापसी, मचाई धूम


नई दिल्‍ली. भारत में क्रिकेट का खेल आज पेशेवर रूप ले चुका है. देश में इस समय ऐसे कई क्रिकेटर हैं जिन्‍होंने इंटर तक ही या इससे भी कम पढ़ाई की और फिर क्रिकेट की खातिर एजुकेशन को तिलांजलि दे दी. कांपिटीशन इतना बढ़ चुका है कि आज यदि किसी प्‍लेयर को क्रिकेट और पढ़ाई में से एक चीज चुनने को कहा जाए तो उसकी प्राथमिकता खेल ही होगी. लेकिन क्‍या आप यकीन करेंगे कि बीते समय में एक क्रिकेटर ऐसा भी रहा है जिसमें इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के लिए भारतीय टीम की ओर से दो टेस्‍ट खेलने के बाद ब्रेक ले लिया था. पांच साल के ब्रेक में इसने इंजीनियरिंग डिग्री हासिल की और फिर भारतीय टीम में न केवल वापसी की बल्कि कई साल तक देश का अग्रणी गेंदबाज रहा.

यहां हम बात कर रहे हैं स्पिनर ईरापल्‍ली प्रसन्‍ना (Erapalli Prasanna) की, जो 1960-70 के दशक में भारतीय क्रिकेट में सफलता का पर्याय रही ‘स्पिन चौकड़ी’ के प्रमुख सदस्‍य रहे. यह क्रिकेट का वह दौर था जब भारत के चार स्पिनरों – बिशन सिंह बेदी, भगवत चंद्रशेखर,ईरापल्‍ली प्रसन्‍ना और एस वेंकटराघवन का विपक्षी बैटरों पर ‘राज’ चलता था. ये चारों स्पिनर, टीम इंडिया की कई बेहतरीन जीत के हीरो रहे.

सौरव गांगुली ने ऐसा क्‍या कहा था कि रात 11 बजे बॉलिंग प्रैक्टिस करने लगे शोएब अख्‍तर

इंग्‍लैंड के खिलाफ 1962 में किया था टेस्‍ट डेब्‍यू

Erapalli Prasanna, Cricket, Test cricket, Team India,Indian cricket team, ईरापल्‍ली प्रसन्‍ना, क्रिकेट, टेस्‍ट क्रिकेट, टीम इंडिया, भारतीय क्रिकेट टीम

ईरापल्‍ली अनंतराव श्रीनिवास प्रसन्‍ना का जन्‍म 22 मई 1940 को कर्नाटक के बेंगलोर (अब बेंगलुरु) में हुआ था. दाएं हाथ से ऑफ स्पिन गेंदबाजी करने वाले प्रसन्‍ना पढ़ाई में भी अच्‍छे थे. पढ़ाई के साथ-साथ क्रिकेट खेलते हुए उन्‍होंने जल्‍द ही बेहतरीन स्पिनर के तौर पर ख्‍याति हासिल कर ली. प्रसन्‍ना ने 1961 में मैसूर की ओर से हैदराबाद के खिलाफ रणजी डेब्‍यू किया.अपने शुरुआती मैच में ही उन्‍होंने तीन विकेट हासिल किए. इसके बाद उनके प्रदर्शन में लगातार निखार आता गया. प्रसन्‍ना ने अपना टेस्‍ट डेब्‍यू जनवरी 1962 में इंग्‍लैंड के खिलाफ चेन्‍नई (तब मद्रास) में किया. हालांकि मैच में वे केवल एक विकेट हासिल कर सके थे. वैसे इस ‘कमजोर’ प्रदर्शन के बावजूद 1962 में ही वेस्‍टइंडीज का दौरा करने वाली भारतीय टीम में भी उन्‍हें चुन लिया गया. बेटे का भारतीय टीम में चयन परिवार के लिए खाास मौका होता है लेकिन प्रसन्‍ना के पिता इससे पूरी तरह खुश नहीं थे.

उन्‍हें इस बात का डर था कि क्रिकेट में व्‍यस्‍त होने से प्रसन्‍ना इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं कर पाएंगे. वे प्रसन्‍ना को वेस्‍टइंडीज जाने की इजाजत देने को लेकर भी असमंजस में थे. ऐसे समय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के तत्‍कालीन सचिव एम चिन्‍नास्‍वामी ने प्रसन्‍ना के पिता को किसी तरह मनाया. पिता ने इसी शर्त पर इजाजत दी कि वेस्‍टइंडीज से लौटकर बेटा इंज‍ीनियरिंग की डिग्री हासिल करेगा जिसे ईरापल्‍ली प्रसन्‍ना से स्‍वीकार किया.

एक ही ODI में शतक और 5 विकेट ले चुके 4 खिलाड़ी, करीब पहुंचकर चूके 3 भारतीय

इंडीज दौरे से लौटकर लिया ब्रेक, इंजीनियरिंग डिग्री हासिल की
वेस्‍टइंडीज के खिलाफ पांच टेस्‍ट की इस सीरीज में प्रसन्‍ना को केवल किंग्‍स्‍टन के दूसरे टेस्‍ट में ही खेलने का मौका मिला जिसमें उन्‍होंने 122 रन देकर तीन विकेट लिए. इस टेस्‍ट सीरीज में भारत को 5-0 की करारी हार का सामना करना पड़ा था. अप्रैल 1962 में जब यह दौरा पूरा कर प्रसन्‍ना वापस लौटे तो उनके लिए स्थिति बदल चुकी थी. पिता का निधन हो गया था, ऐसे में पिता से किए वादे को निभाते हुए प्रसन्‍ना ने क्रिकेट से ब्रेक लेने का बड़ा फैसला किया और इंजीनियर की पढ़ाई की. इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद उन्‍होंने 5 साल बाद जनवरी 1967 में टेस्‍ट क्रिकेट में अपनी ‘दूसरी पारी’ शुरू की. 1978 तक चले इंटरनेशनल करियर में प्रसन्‍ना ने 49 टेस्‍ट खेले और 30.38 के औसत से 189 विकेट हासिल किए. 140 रन देकर आठ विकेट उनका पारी का और 140 रन देकर 11 विकेट  मैच का सर्वश्रेष्‍ठ गेंदबाजी प्रदर्शन रहा जो उन्‍होंने 1976 में न्‍यूजीलैंड के खिलाफ वेलिंगटन टेस्‍ट में किया था.

क्रिकेट स्क्वॉड या ‘ब्रदर ब्रिगेड!’, जब ODI में एक टीम से खेलीं भाइयों की 4 जोड़‍ियां

सर्वश्रेष्‍ठ ऑफ स्पिनरों में शुमार लेकिन सिर्फ 49 टेस्‍ट खेले

Erapalli Prasanna, Cricket, Test cricket, Team India,Indian cricket team, ईरापल्‍ली प्रसन्‍ना, क्रिकेट, टेस्‍ट क्रिकेट, टीम इंडिया, भारतीय क्रिकेट टीम

प्रसन्‍ना को देश के बेहतरीन ऑफ स्पिनरों में शुमार किया जाता है. हालांकि एक दशक से अधिक समय तक चले करियर में वे 49 टेस्‍ट ही खेल सके. इसका कारण 1962 में टेस्‍ट डेब्‍यू के बाद इंजीनियरिंग डिग्री के लिए ब्रेक लेना और ऑफ स्पिनर के तौर पर वेंकटराघवन को उन पर तरजीह मिलना था. उनके दौर की भारतीय टीम में बतौर स्पिनर बिशन सिंह बेदी और बी चंद्रशेखर का चयन निश्‍चित होता था जबकि ऑफ स्पिनर के तौर पर वेंकटराघवन और प्रसन्‍ना के बीच ‘मुकाबला’ रहता था जिसमें कई बार ‘वेंकट’ बाजी मार जाते थे. हालांकि कई क्रिकेट समीक्षक प्रसन्‍ना को वेंकट से बेहतर स्पिनर मानते थे. स्पिन चौकड़ी के इन चारों दिग्‍गजों ने एक साथ बेहद कम मैच खेले.

प्रसन्ना ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘एक क्रिकेटर के लिए प्राइम पीरियड तब होता है जब वह 27 से 28 साल का होता है. जब मेरे पिताजी का निधन हुआ तब मैं 22 वर्ष का था. अगर मैं उन पांच वर्षों में भारत के लिए खेलता तो पता नहीं और कितने विकेट हासिल करता.’ कप्‍तान के तौर पर मंसूर अली खान पटौदी ने प्रसन्‍ना की क्षमता का सबसे बेहतर उपयोग किया. इस ऑफ स्पिनर ने अपने 189 में से 116 विकेट, पटौदी की कप्‍तानी में ही हासिल किए. ‘टाइगर’ के नाम से लोकप्रिय पटौदी ने एक बार प्रसन्‍ना की तारीफ करते हुए कहा था, ‘प्रस (प्रसन्‍ना का निकनेम) साथ हो तो आप देश में कहीं भी विकेट की उम्‍मीद कर सकते हैं.’

सुनील गावस्‍कर से जितनी नफरत करते थे कैरेबियन फैंस, उतना ही प्‍यार, जानें वजह

बैटरों को ‘छकाकर’ हासिल करते थे विकेट
विपक्षी बैटरों को अपनी फ्लाइट के जाल में उलझाकर विकेट लेने में प्रसन्‍ना माहिर थे. गेंद की फ्लाइट पर उनका कमाल का कंट्रोल था. वे फ्लाइटेड गेंद फेंककर, बैटर को शॉट खेलने के लिए उकसाते थे. ‘शिकार’ जब झांसे में आ जाता था तो एकाएक गेंद को लेंथ बदलकर बैटरों को स्‍टंप या कैच आउट कराते थे. आर्म बॉल फेंकने में वे बेजोड़ थे. भारत के पूर्व कप्‍तान बिशन सिंह बेदी भी प्रसन्‍ना की गेंदबाजी के कायल थे. बेदी और प्रसन्‍ना अच्‍छे दोस्‍त थे और विकेट हासिल करने के बाद इन दोनों के जश्‍न मनाने का अंदाज भी अनूठा होता था. ऑस्‍ट्रेलिया के पूर्व कप्‍तान इयान चैपल ने प्रसन्‍ना की तारीफ में कहा था कि उन्‍होंने अपने करियर में जितने भी स्पिनरों का सामना किया उसमें प्रसन्‍ना सर्वश्रेष्‍ठ थे.

समान स्‍कोर, आखिरी ओवर और छक्‍का..भारत-पाक के दो मैचों में कई बातें एक जैसी

20 टेस्‍ट में पूरे किए थे 100 विकेट, बाद में अश्विन ने तोड़ा रिकॉर्ड
प्रसन्ना ने पहले दो टेस्ट मैच में सिर्फ चार विकेट चटकाए थे लेकिन जब उन्होंने पांच साल बाद 1967 में वापसी की तो विकेटों का अंबार लगा डाला. महज 20 टेस्ट मैचों में 100 विकेट पूरे करके वे टेस्ट में विकेटों का सबसे तेज ‘शतक’ लगाने वाले भारतीय बने थे. कई वर्ष बाद एक अन्‍य ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन (18 टेस्‍ट) ने इस रिकॉर्ड को अपने नाम किया. प्रसन्‍ना की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि स्पिन बॉलिंग के लिए कम मददगार पिचों पर भी वे विकेट हासिल करने में सफल रहते थे. विदेशी मैदानों पर भी उनका गेंदबाजी रिकॉर्ड बेहतरीन है.

Tags: Cricket, Indian Cricket Team, Team india, Test cricket



Source link

Related posts

छक्के से मुंबई को दिलाई जीत, सूर्यकुमार यादव ने सेंचुरी ठोक अकेले पलटा मैच, SRH का खेल किया खराब – News18 हिंदी

Ram

टी20 विश्व कप 2024 जरूर खेले 2 खिलाड़ी, रोहित शर्मा प्लेइंग XI में रखना ना भूले, पूर्व तेज गेदबाज ने सुझाया नाम

Ram

आखिरी ओवर में गिरते पड़ते जीती मुंबई… पंजाब ने रोक दी थी सांसे.. 7 मैचों में मिली तीसरी जीत

Ram

Leave a Comment