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May 19, 2024
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राजीव गांधी ने 40 साल पहले क्यों हटाया था विरासत टैक्स, 9 साल पहले क्यों फिर लगाने पर हुआ विचार


Inheritance tax: इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा (Sam Pitroda) ने भारत में अमेरिका जैसी इन्हेरिटेंस टैक्स या विरासत कर प्रणाली की वकालत की है. हालांकि सैम पित्रोदा के इस बयान पर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. कई विकसित देशों में इन्हेरिटेंस टैक्स अभी भी लागू है, लेकिन सौभाग्य से भारत में यह टैक्स नहीं है. भारत में लगभग 40 साल पहले इन्हेरिटेंस टैक्स, जिसे संपत्ति कर या संपत्ति शुल्क के रूप में भी जाना जाता है लगाया जाता था. इन्हेरिटेंस टैक्स की दर आम तौर पर उत्तराधिकारी द्वारा प्राप्त संपत्ति के मूल्य और मृतक के साथ उसके संबंध पर निर्भर करती थी. इसके विपरीत, संपत्ति कर, मृत्यु के समय मृत व्यक्ति के स्वामित्व वाली संपत्ति के शुद्ध मूल्य पर आधारित होता थी. इसे तभी एकत्र किया जाता था जब मूल्य कानून के तहत छूट सीमा से अधिक हो. 

वीपी सिंह ने हटाया इन्हेरिटेंस टैक्स
राजीव गांधी की तत्कालीन केंद्र सरकार में वित्त मंत्री रहे वीपी सिंह ने इन्हेरिटेंस टैक्स समाप्त करने का निर्णय किया था. वीपी सिंह का मानना ​​था कि इस टैक्स ने अधिक न्यायसंगत समाज बनाने और धन असमानता को कम करने के अपने इच्छित लक्ष्य को हासिल नहीं किया है. इन्हेरिटेंस टैक्स या संपत्ति शुल्क को इस तर्क पर समाप्त कर दिया गया था कि इससे प्राप्त होने वाला शुद्ध लाभ नकारात्मक था. क्योंकि सरकार ने खुद को असंख्य मुकदमेबाजी में फंसा पाया था और टैक्स से प्राप्त आय उसके प्रशासन की लागत से काफी कम थी. इसलिए इस टैक्स को 1985 में समाप्त कर दिया गया था. 

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भारत में कैसे लगाया जाता था संपत्ति कर?
भारत में, परिवार के मुखिया की मृत्यु पर कानूनी उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित संपत्ति पर इन्हेरिटेंस टैक्स लगाया जाता था, चाहे वे बेटे-बेटियां हों या पोते-पोतियां. संपत्ति शुल्क अधिनियम 1953 के तहत मृतक की संपत्ति के उत्तराधिकारियों को विरासत में मिली संपत्ति के मूल्य का 85 प्रतिशत तक उच्च ‘संपत्ति शुल्क’ का भुगतान करना पड़ता था. 1953 में, संपत्ति कर लागू करके आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए भारत में संपत्ति शुल्क अधिनियम लागू किया गया था. इसके तहत 20 लाख रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति के लिए दरें 85 प्रतिशत तक बढ़ गई थीं. यह अचल और चल दोनों संपत्तियों पर लागू होता था, चाहे उनका स्थान कुछ भी हो. यह कर तभी देय होता था जब विरासत में मिली संपत्ति का कुल मूल्य तय सीमा से अधिक हो. 

ईडीए उस संपत्ति को परिभाषित करता है जिसे परिवार के मुखिया की मृत्यु पर हस्तांतरित माना जाता है: वह संपत्ति जिसका निपटान करने के लिए मृतक सक्षम था. वह संपत्ति जिसमें मृतक या किसी अन्य व्यक्ति का हित था जो मृतक की मृत्यु पर समाप्त हो गया. ईडीए जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू था. 

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आय में असमानता
अर्थशास्त्रियों ने 1922 और 2014 के बीच आय असमानता का विश्लेषण करते हुए पाया कि भारत में यह 1922 के बाद से अपने चरम पर है, जब पहली बार यहां आयकर लागू किया गया था. 1930 के दशक में भारत में कमाई करने वाले शीर्ष 1 फीसदी लोगों की कुल आय में हिस्सेदारी 21 फीसदी से कम थी. 1980 के दशक में यह काफी कम होकर 6 फीसदी रह गया. हालांकि, इसके बाद यह लगातार 2014 में 22 फीसदी की ऐतिहासिक ऊंचाई तक बढ़ गया. भारत में धन असमानता भी चिंताजनक रही है. क्रेडिट सुइस 2018 ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अमीर 1 फीसदी के पास 51.5 फीसदी और सबसे अमीर 10 फीसदी के पास देश की 77.4 प्रतिशत संपत्ति है. इसके विपरीत, निचली 60 फीसदी आबादी के पास इसका केवल 4.7 प्रतिशत हिस्सा है.

क्या फिर हो सकता है लागू
यदि हाल की समाचार रिपोर्टों को कोई संकेत माना जाए तो ऐसी संभावना है कि हम आगामी बजट में या फिर उसके बाद इसको फिर देख सकते हैं, भले ही थोड़े अलग अवतार में. नीति निर्माता समय-समय पर भारत में विरासत या संपत्ति कर लागू करने पर विचार करते रहे हैं. इतिहास अच्छा ना होने के बावजूद यह विरासत या संपत्ति कर को लागू करने का एक सही समय माना जा रहा है. क्योंकि भारत में, विशेष रूप से उदारीकरण के बाद की अवधि में धन, आय और उपभोग में असमानता बढ़ रही है. 2015 में भी मोदी सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इसे लागू करने पर विचार किया था. लेकिन उस समय सरकार इस पर कोई ठोस फैसला नहीं कर सकी. वैसे सरकार इसे लेकर क्या सोचती है, फिलहाल तो यह दूर की कौड़ी है.

Tags: BJP, Congress, House tax, Income tax, Property, Property tax, Rajiv Gandhi



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