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May 17, 2024
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‘जाओ! जाकर फांसी लगा लो’, क्‍या यह कहना मौत के लिए उकसाने को है काफी? हाईकोर्ट में आया मामला, जज बोले…


नई दिल्‍ली. जाओ.. जाकर फांसी लगा लो. क्‍या किसी को यह कहना उसे आत्‍महत्‍या के लिए उकसाने के समान है. कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने ऐसा ही एक मामला आया. जहां एक पुजारी की मौत के मामले में एक युवक को पुलिस ने इसलिए आरोपी बनाया क्‍योंकि उसने मृतक को फांसी लगाने के लिए मौखिक तौर पर कहा था. न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की बेंच ने इस बयान को आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में रखने से इनकार कर दिया. बेंच में आत्महत्या के लिए उकसाने का निर्धारण करने की जटिलता को संबोधित किया.

कर्नाटक के उडुपी में एक चर्च के पादरी की मौत हो गई थी. याचिकाकर्ता की पत्‍नी और पादरी के बीच कथित तौर पर संबंध थे. बताया जा रहा है कि आरोपी ने पादरी को गुस्‍से में कहा था कि जाओ आत्‍महत्‍या कर लो. इसके बाद पादरी ने अपना जीवन खत्‍म कर लिया। बचाव पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि यह बयान कथित संबंध का पता चलने पर व्यथित होकर दिया गया था और पादरी का अपना जीवन समाप्त करने का निर्णय केवल आरोपी के शब्दों के बजाय, दूसरों को इस संबंध के बारे में पता चलने से प्रभावित था.

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उधर, मृतक के परिजनों की तरफ से कहा गया कि मामले को उजागर करने के बारे में आरोपी की धमकी भरी भाषा के कारण पादरी ने अपनी जान ले ली. एकल न्यायाधीश पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित उदाहरणों का सहारा लेते हुए इस बात पर जोर दिया कि ऐसे बयान अकेले आत्महत्या के लिए उकसाने वाले नहीं हो सकते हैं.

'जाओ! जाकर फांसी लगा लो', क्‍या यह कहना मौत के लिए उकसाने को है काफी? हाईकोर्ट में आया मामला, जज बोले...

कोर्ट ने याचिका पर क्‍या कहा?
अदालत ने पादरी की आत्महत्या के पीछे बहुआयामी कारणों को स्वीकार किया, जिसमें एक पिता और पुजारी के रूप में उनकी भूमिका के बावजूद उनके कथित अवैध संबंध भी शामिल थे. मानव मनोविज्ञान की जटिलताओं को पहचानते हुए, अदालत ने मानव मन को समझने की चुनौती को रेखांकित किया और आरोपी के बयान को आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में वर्गीकृत करने से इनकार कर दिया. अदालत ने मानव व्यवहार की जटिल प्रकृति और ऐसी दुखद घटनाओं के पीछे की प्रेरणाओं को पूरी तरह से उजागर करने में असमर्थता पर जोर देते हुए मामले को रद्द कर दिया.

Tags: Karnataka High Court, Latest hindi news, Udupi



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